SWAMI VIVEKANANDA

SWAMI VIVEKANANDA
Come up, O lions, and shake off the delusion that you are sheep; you are souls immortal, spirits free, blest and eternal; ye are not matter, ye are not bodies; matter is your servant, not you the servant of matter.

Friday, July 8, 2011

हम होंगे कामयाब एक दिन

होंगे कामयाब होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो हो हो मन मे है विश्वास
पुरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन॥धृ॥
होगी शान्ती चारो ओर
होगी शान्ती चारो ओर
होगी शान्ती चारो ओर एक दिन
हो हो हो मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास होगी शांती चारो ओर एक दिन ॥१॥

हम चलेंगे साथ साथ
डाले हाथोमें हाथ
हम चलेंगे साथ साथ एक दिन
हो हो हो मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास हम चलेंगे साथ साथ एक दिन॥२॥

नही डर किसी का आज
नहि भय किसी का आज
नहि डर किसी का आज के दिन
हो हो हो मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास नही डर किसी का आज एक दिन ॥३॥

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिन्दुस्तान की

Singer: Pardeep Music: Hemant Kumar, Lyrics: Pardeep


Jagriti (1954)
( आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिन्दुस्तान की
इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वन्दे मातरम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम … ) – २

उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो, गंगा का ये घाटहै
बात-बात में हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है

देखो ये तस्वीरें अपने, गौरव की अभिमान की
इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वन्दे मातरम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम …

ये है अपना राजपूताना, नाज़ इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा, बरछी, तीर , कतारों पे
ये प्रताप का वतन पला है, आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ, हज़ारों पद्मिनियाँ अंगारों पे

बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की
इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वन्दे मातरम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम …

देखो मुल्क मराठों का ये, यहाँ शिवाजी डोला था
मुगलों की ताकत को जिसने, तलवारों पे तोला था
हर पर्वत पे आग लगी थी, हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की, बच्चा-बच्चा बोला था

यहाँ शिवाजी ने राखी थी, लाज हमारी शान की
इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वन्दे मातरम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम …

जलियाँ वाला बाग़ ये देखो यहाँ चली थी गोलियां
ये मत पूछो किस ने खेली, यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ बंदूकें दन दन, एक तरफ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे, इंतक़लाब की बोलियाँ

यहाँ लगा दी बहनों ने भी, बाज़ी अपनी जान की
इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वन्दे मातरम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम …

ये देखो बंगाल यहाँ का, हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इस को बिजली ने, भून्चालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है, और कान में ताला है

जन्म-भूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिटटी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वन्दे मातरम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम …

रामधारी सिंह दिनकर की शक्ति और क्षमा-

क्षमा दया तप त्याग मनोबल
सबका लिया सहारा।
पर नरव्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो कहां कब हारा।
क्षमाशील हो रिपु समक्ष
तुम विनीत हुए जितना ही।
दुष्ट कौरव ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दंतहीन
विषहीन विनीत सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति रहे सिंधु किनारे।
बैठे बैठे छंद को पढ़ते
अनुनय के प्यारे प्यारे।
उत्तर से जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से।
उठी अधीर धधक पौरूष की
आग राम से शर से।
सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में।
चरण पूजि दासता ग्रहण की
बंधा मूढ बंधन में।
सच पूछो तो शर में ही
बसती दीप्ति विनय की ।
संधि वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता क्षमा दया को
तभी पूजता जग है।
बल के दर्प चमकता जिसके
पीछे जब जगमग है।।

The Road Not Taken By Robert Frost

Two roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;

Then took the other, as just as fair,
And having perhaps the better claim,
Because it was grassy and wanted wear;
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,

And both that morning equally lay
In leaves no step had trodden black.
Oh, I kept the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way,
I doubted if I should ever come back.

I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I—
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.

Stopping by Woods on a Snowy Evening

Whose woods these are I think I know.
His house is in the village though;
He will not see me stopping here
To watch his woods fill up with snow.

My little horse must think it queer
To stop without a farmhouse near
Between the woods and frozen lake
The darkest evening of the year.

He gives his harness bells a shake
To ask if there is some mistake.
The only other sound’s the sweep
Of easy wind and downy flake.

The woods are lovely, dark and deep.
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep.

खूनी हस्‍ताक्षर / गोपालप्रसाद व्यास

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सही
खूँ की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, "स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके हो जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणों में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है"

यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।"

हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, "इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ,
आएजो इसको हँसकर लेता हो!"

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो ।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।